फाइल फोटो मुहर्रम २०१९
कर्बला में इमाम हुसैन की शहादत के बाद मानव्ता की जीत हुयी यही सन्देश मुहर्रम में दिया जाता है | एस एम् मासूम
एस एम् मासूम | मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर हिजरी का पहला महीना है और इस महीने की इस्लाम धर्म में बड़ी अहमियत रही है और इस महीने रोज़ा रखना पुण्य का काम है | सन् 680 में पैगम्बर हजरत मुहम्म्द स० के नाती इमाम हुसैन को ज़ालिम बादशाह यज़ीद की फ़ौज ने उनके परिवार के साथ इराक के एक सुनसान इलाक़े में घेर के भूखा प्यासा शहीद कर दिया गया और औरतों तथा बच्चों को क़ैदी बना के ज़ुल्म करते यज़ीद के दरबार सीरिया में ले जाया गया | जिस दिन इमाम हुसैन को उनके परिवार के साथ शहीद किया गया वो मुहर्रम के महीने का दसवां दिन था जिसे आशूरा कहते हैं | शिया मुसलमान इस आशूरा के दिन रोज़ा नहीं रखता और पूरा दिन इमाम हुसैन की शहादत के दुःख में कुछ खाता पीता नहीं और ताज़िया दफन करने बाद ही पानी पीता है |
मुहर्रम का चाँद देखते ही इमाम हुसैन के चाहने वाले उनकी शहादत को याद करके आंसू बहाते हैं शोक सभाएं (मजलिस ) आयोजित करते हैं और ताज़िया रखते हैं | हर मुसलमान इमाम हुसैन पे हुए ज़ुल्म को सुन के दुखी रहता है और अपने अपने तरीके से उनकी क़ुर्बानियों को याद करता है | पहली मुहर्रम से मुसलमानो के हर समुदाय के लोग ताज़िया या अज़ादारी का जुलुस निकालने लगते हैं और दसवीं मुहर्रम आशूरा को ताज़िया अपने अपने शहर की कर्बला में दफन कर देते हैं |
मुसलमानो का शिया समुदाय पहली मुहर्रम से शोक सभाएं (मजलिस ) का आयोजन इमामबाड़ों , घरों में करने लगता हैं और जुलुस अज़ादारी का निकालता है जिसमे प्रतीक चिन्ह जैसे अलम, ताज़िया, तुर्बत ,ज़ुल्जिनाह इत्यादि कर्बला को याद करने के लिए शामिल किये जाते हैं और काले कपडे पहने इमाम हुसैन की शहादत पे आंसू बहाने वाले नौहा मातम करते ,कर्बला की दास्तान वहाँ पे हुए ज़ुल्म को बताते किसी पास के दूसरे इमामबाड़े या शहर की कर्बला तक ले जाते हैं | इस जुलूसों में इमामबाड़ों में हर धर्म के लोगों का स्वागत हुआ करता है | दस दिनों तक लोग इमामबाड़ों , घरों के आस पास और शहर में घूम घूम के लोगों को इमाम हुसैन की प्यास को याद करके पानी और शरबत पिलाते है | ये लोग इमाम हुसैन की शहादत से बड़ा कोई ग़म नहीं कहते हुए मुहर्रम का चाँद होते ही दुःख की निशानी काले कपडे पहल लेते हैं औरतें ज़ेवर उतार देती हैं चूड़ियां तोड़ देती है और दो महीने आठ दिन ख़ुशी का कोई काम नहीं करते |
![अज़ादारी ज़ुलक़दर मंज़िल जौनपुर अज़ादारी ज़ुलक़दर मंज़िल जौनपुर](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7s89W8IZLTpwhDyhZrS2Pex8aXIJty1DHJk7JLId27y4yEhi13Qa5N-wAf9_RBhGN-ekg3T7DuLP51KD7xEi1bKeDLwzbmeaD7haWoBYuub48cHf_DW05s6YYtb5p7vX2T_W5BuMdSbu-/w640-h480/11238260_10153338155744436_457605775781734517_o.jpg)
फाइल फोटो मुहर्रम २०१९
दस दिनों तक यह सिलसिला चलता रहता है और दस मुहर्रम आशूरा को हर मुसलमान जो अपने अपने तरीके से ताज़िया रखके हुसैन को याद कर रहा था अपने अपने ताज़िये को शहर की कर्बला में दफन कर देता है|
कर्बला में इमाम हुसैन पे किये गए ज़ुल्म और शहादत की घटना उस दौर के बादशाह यज़ीद की फ़ौज द्वारा अंजाम दी गयी अपने आप में बड़ी वीभत्स और निंदनीय है और शायद इसी कारण हमारे देश में सभी मुसलमान इमाम हुसैन की शहादत पे दुखी होते हैं और यहां तक की हिन्दू भी ताज़िया निकलते , नौहा पढ़ते और इमाम हुसैन पे हुए ज़ुल्म को को याद करके दुखी होते हैं |
पैगम्बर हजरत मुहम्म्द स० के नाती इमाम हुसैन का सबसे बड़ा पैगाम था ज़ुल्म का इस्लाम से कोई रिश्ता नहीं और कर्बला में इमाम हुसैन की शहादत के बाद मानव्ता की जीत हुयी |
एस एम् मासूम
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