आज हर 40 सेकेण्ड में एक व्यक्ति कर रहा आत्महत्याः डा. हरिनाथ यादव

जौनपुर। विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस हर साल 10 सितंबर को मनाया जाता है। इसको मनाने का उद्देश्य दुनिया भर में तेजी से बढ़ रहे आत्महत्या के मामलों को रोकना और लोगों में मानसिक स्वास्थ के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए मनाया जाता है। उक्त बातें मानसिक रोग विशेषज्ञ डा. हरिनाथ यादव (न्यूरो साइकियाट्रिक) ने कही। आगे बताया कि आजकल लोगों में हताशा और निराशा बढ़ रही है। जब कोई बहुत ज्यादा बुरी मानसिक स्थिति से गुजरता है तो एकदम अवसाद में चला जाता है। इसी अवसाद की वजह से लोग ज्यादातर आत्महत्या कर लेते हैं जिससे उनके परिवार पर बहुत नकारात्मक असर पड़ता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। हर साल लगभग 8 लाख से ज्यादा लोग आत्महत्या कर लेते हैं जबकि इससे भी अधिक संख्या में लोग आत्महत्या की कोशिश करते हैं। यह स्थिति बहुत डराने वाली है। इससे पता चलता है कि वर्तमान में लोगों में कितना ज्यादा मानसिक तनाव है। इस आंकड़े मुताबिक दुनिया भर में 79 फीसदी आत्महत्या विकासशील देशों के लोग करते हैं।
डा. यादव ने कहा कि कोरोना काल में ये आंकड़ा बढ़ा जरूर है लेकिन पहले भी आत्महत्या की दर कोई कम नहीं थी। युवा वर्ग के लोग आत्महत्या जैसे घातक कदम ज्यादा उठाते हैं। इसकी कई वजह होती है। जैसे पढ़ाई का प्रेशर, करियर प्रॉब्लम्स और खराब होते रिश्ते भी इसकी एक मुख्य वजह है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक भारत में 2019 में कुल 139123 लोगों ने आत्महत्या की। यानी देश में हर रोज करीब 381 लोगों ने अपने हाथ से अपनी जिंदगी खत्म कर ली। ताजा आंकड़े वर्ष 2018 की तुलना में करीब 3.4 फीसद ज्यादा है। सीधा मतलब यह है कि आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ी है। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2019 में शहरों में आत्महत्या की दर 13.9 फीसद रही है जो पूरे भारत में आत्महत्या की दर 10.4 फीसद से अधिक थी। सोचिए, बेहतरी की रेस में हम अपनी मानसिक शांति और दिखावे के चक्कर में अपने अपने रिश्ते खोते जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों के मुताबिक करीब 32.4 फीसद मामलों में लोगों ने पारिवारिक समस्याओं के चलते अपनी जिंदगी खत्म की तो 17.1 फीसद लोगों ने बीमारी से परेशान होकर ये खौफनाक फैसला लिया। वहीं 5.5 प्रतिशत लोगों ने वैवाहिक समस्याओं के चलते ऐसा कदम उठाया और 4.5 फीसद लोगों ने प्रेम संबंधों को लेकर जान दे दी। करीब दो फीसद लोगों की आत्महत्या करने की वजह बेरोजगारी और एग्जाम में फेल होना रही। 5.6 फीसद लोगों ने ड्रग एडिक्शन के चुंगल में फंसकर अपनी जान गंवाई।
आम तौर पर संघर्षशील माने जाने वाले भारतीय पुरुषों ने आत्महत्या ज्यादा की है। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि 100 मामलों में से 70.2 फीसदी पुरुषों ने खुदकुशी की जबकि 29.8 फीसदी महिलाओं ने जान दी। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2019 में आत्महत्या के मामलों में 53.6 फीसद लोगों ने फांसी लगाकर, 25.8 फीसद ने जहर खाकर, 5.2 फीसद लोगों ने पानी में डूबकर, 3.8 फीसद लोगों ने आत्मदाह कर अपना जीवन खत्म किया।
डा. यादव ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान जैसे नींद न आना, मन का उदास रहना, किसी काम मे मन न लगना, हीन भावना होना और बार-बार मरने का विचार आना इस प्रकार का लक्षण दिखाई देने पर अति शीघ्र मनोचिकित्सक को दिखाए और उससे बाते करे और उसे अकेला न छोड़े, कभी कभी लोगों को किसी की बातों से उम्मीद की किरण दिखने लगती है।
उन्होंने बताया कि सर्वप्रथम अवसाद को स्वीकार करें। यह एक मानसिक बीमारी है और यह मनोचिकित्सक की सलाह, कॉउंसलिंग व दवा लेने से पूरी तरह से ठीक हो जाती है। याद रखना चाहिये कि किसी भी समस्या का अंतिम विकल्प आत्महत्या नहीं होता और अंधेरे समय मे भी, उम्मीद की किरण हमेशा होती है।

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