विश्व में धाक जमा रही हिन्दी को करोड़ों लोग बोलते हैं राष्ट्रभाषाः नन्द लाल यादव

सिरकोनी, जौनपुर। विश्व भर में बोलचाल के लिए लगभग 3500 भाषाओं और बोलियों का प्रयोग किया जाता है लेकिन मौखिक और लिखित दोनों प्रकार के संचार के लिए काम आने आने वाली भाषाओं में से लगभग 16 भाषाएँ ऐसी हैं जिनका व्यवहार 5 करोड़ से अधिक लोग करते हैं। यह गौरव की बात है कि भारत ही ऐसा एकमात्र देश है। जहाँ पर भारतीय भाषाएँ बोलने वाले व्यक्ति भारत सहित 137 देशों में फैले हुए हैं लेकिन यह दुःख की बात है कि इस सूची में शामिल भारतीय भाषाओं में प्रमुख हिन्दी का व्यवहार करने वालों की प्रामाणिक संख्या अब तक नहीं जानी जा सकी है। उक्त बातें सरस्वती निकेतन इण्टर कालेज सिरकोनी के प्रबन्धक नन्द लाल यादव ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से कही। उन्होंने आगे कहा कि विश्व भाषाओं में हिन्दी का सही स्थान तलाशने का काम तृतीय विश्व हिन्दी सम्मेलन से ही शुरू कर दिया जाए तो अच्छा रहेगा, इसलिए पहले यह जांच करना जरूरी है कि भारत की जनगणना (1971) में हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओं के साथ क्या बर्ताव किया गया है? जनगणना करने वालों ने यह प्रश्न पूछा होता कि क्या मातृभाषा के अलावा आप हिन्दी जानते, बोलने या समझते हैं तो हिन्दी का व्यवहार करने वालों की सही स्थिति सामने आ जाती। हिन्दी देश को जोड़ने वाली भाषा है, इसे उसके अपने ही घर में न तोड़ें। स्वाधीनता के लिए जब जब आन्दोलन तेज हुआ तब तब हिन्दी की प्रगति का रथ भी तेज गति से आगे बढ़ा। हिन्दी राष्ट्रीय चेतना की प्रतीक बन गई। स्वाधीनता आन्दोलन का नेतृत्व जिन नेताओं के हाथों में था, उन्होंने यह पहचान लिया था कि विगत 600-700 वर्षों से हिन्दी सम्पूर्ण भारत की एकता का कारक रही है। यह संतों, फकीरों, व्यापारियों, तीर्थ यात्रियों, सैनिकों आदि के द्वारा देश के एक भाग से दूसरे भाग तक प्रयुक्त होती रही है। हिन्दी भारतीय स्वाभिमान और स्वातंर्त्य चेतना की अभिव्यक्ति का माध्यम बन गई। हिन्दी राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक हो गई। इसके प्रचार प्रसार में सामाजिक, धार्मिक तथा राष्ट्रीय नेताओं ने सार्थक भूमिका का निर्वाह किया।

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