चंबल नदी में पाए जाते हैं खास प्रजाति के कछुए,लाखों रुपये की होती है कीमत,जानिए खासियत

चंबल नदी में पाए जाते हैं खास प्रजाति के कछुए,लाखों रुपये की होती है कीमत,जानिए खासियत

आगरा। चंबल नदी यूं ही खास नहीं है। चंबल का बीहड़ डाकुओं के लिए कुख्यात रहा है। नदी घडिय़ालों के लिए लेकिन इन सब के बहुुत से लोग एक बात और नहीं जानते। चंबल नदी में खास प्रजाति के कछुए भी मिलते हैं। कछुओं को प्रकृति का मित्र कहा जाता है।

चंबल नदी राजस्थान, मध्य प्रदेश और उप्र में बहती है। बाह में नदी के किनारे चंबल सेंचुरी बनी है, जिसमें विलुप्त प्राय जलीय प्राणियों का संरक्षण किया जा रहा है। अति दुर्लभ प्राणियों के कुनबे में वृद्धि हो रही है। यहां मिलने वाले कछुओं में साल, पचेड़ा, सुंदरी, इंडियन स्टार प्रमुख रूप से शामिल हैं। चूंकि कछुओं का प्रयोग तंत्र-मंत्र और शक्ति वर्धक दवाओं के उत्‍पादन में किया जा रहा है, इसलिए शिकारी यहां उन्‍हें अपना शिकार बनाते रहते थे। अब संरक्षण कार्य शुरू होने से कछुओं की संख्‍या में भी आशातीत वृद्धि हो रही है।

येे कछुए पाए जाते हैं यहां

साल: इनका बाहरी कवच कठोर होता है। यह पूरी तरह अस्थियों से बना होता है। यह शाकाहारी होते हैं और नदी व तालाब की सड़ी-गली वनस्पति को खाकर पानी को साफ करते हैं। नर कछुए मादा से आकार में छोटे व आकर्षक होते हैं। यह स्वभाव से सरल व शर्मीले होते हैं।

पचेड़ा: इसका कवच टेंट की तरह होता है और आंखों के पीछे भूरे व लाल रंग के डॉट्स होते हैं। यह आकार में छोटे होते हैं। मादा पुरुष से बड़ी होती है।

सुंदरी: यह दक्षिण एशिया में साफ पानी में पाई जाने वाली कछुओं की प्रजाति है।

कटहेवा: यह कछुए 94 सेमी तक बड़े होते हैं। इनके कवच पर गोले बने होते हैं।

मोरपंखी: इनमें बाहरी कवच मुलायम होता है और मांसपेशियों से बना होता है। ये मांसाहारी होते हैं तथा नदियों व तालाबों में मरे एवं सड़े-गले जीव जंतुओं को खाकर जल को स्वच्छ करते हैं। नर कछुए मादा से आकार में बड़े और स्वभाव से आक्रामक होते हैं।

येे प्रजातियां भी हैं यहां

चौड़, धमोक, इंडियन स्टार

लाखों में कीमत

सुन्दरी प्रजाति की कीमत लाखों रुपये में है। सुन्दरी, चित्रा, इंडिका कछुए की कीमत लाखों रुपए में है। इसकी वजह तंत्र मंत्र के बाजार में इन प्रजाति के कछुओं की मांग अत्यधिक है। तांत्रिकों के जाल में फंसकर लोग रातों-रात करोड़पति बनने के इरादे से 20 नाखून के कछुए को मुंहमांगी कीमत पर खरीदते हैं।

मांंस का प्रयोग यौन शक्ति वर्धक दवाओं में

कुछ प्रजाति के कछुओं के मांस का प्रयोग यौन शक्ति वर्धक दवाओं के उत्‍पादन में भी किया जा रहा है। यही वजह है कि चंबल से सटे इलाकों में शिकारी, शिकार की तलाश में रहते थे। अब सख्‍ती होने से यहां कछुओं का शिकार काफी हद तक रुका है।

35 किलोग्राम तक का कछुआ

चंबल क्षेत्र में 35 किलोग्राम वजन तक के कछुए पाए जाते हैं। एक बार में मादा 30 अंडे तक देती है। संरक्षण शुरू होने के बाद अंडों को सुरक्षित रखे जाने की कवायद चल रही है। इससे पहले अंडों को दूसरे जानवर अपना शिकार बना लेते थे। मई और जून के महीने यहां हैचिंग हो रही है। जीवजंतु विशेषज्ञ सतेंद्र शर्मा और रेंजर आरके राठौड़ ने बताया संकट में पहुंची कछुओं की प्रजाति के संरक्षण का कार्य चंबल नदी में चल रहा है। 


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