"राष्ट्रीय बालिका दिवस पर विशेष" डॉ अखिलेश्वर शुक्ला

महिला और बाल विकास मंत्रालय ने 2008 में  राष्ट्रीय बालिका दिवस-24 जनवरी को प्रत्येक वर्ष मनाने का निर्णय लिया था। तब से यह पुरे भारत में विविध आयोजन करके बालिकाओं के शिक्षा, सुरक्षा व सम्मान के लिए विद्वत जनों द्वारा विचार ब्यक्त करके मनाया जाता है।किसी भी राष्ट्र की सभ्यता, संस्कृति को समझने के लिए उस राष्ट्र में स्ञीयों की दशा व दीशा का अध्ययन आवश्यक है। आज के युवा (बालिकाएं) कल के भारत निर्माण में अग्रणी भूमिका निभा सकें, इस दृष्टि से इसकी अहमियत को कम नहीं आंका जा सकता है।                                        लिंगानुपात के आधार पर देखा जाए तो भारत में 1000 पुरूषों पर 943 महिलाएं हैं। हरियाणा में तो 1000 पर माञ 879 हैं। जौनपुर जनपद में यह अनुपात 1000 पर 1024 है-जो सुखद सराहनीय है। इस आंकड़े से भ्रुणहत्या के  दुस्परिणाम को आसानी से समझा जा सकता है।                                     उच्च शिक्षा में 2018-19 के एक सर्वे के मुताबिक कुल 14.16 लाख शिक्षकों में -57.85% पुरूष तो 42.15% महिलाएं हैं। वहीं केरल, पंजाब हरियाणा, चंडीगढ़, मेघालय, नागालैंड,गोवा व दिल्ली में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या अधिक है। अस्थाई पदों पर भी बराबर की स्थिति है। यह सिद्ध करता है कि शिक्षा के प्रति रूक्षान में बढ़ोत्तरी हुई है।                                                    महिलाओं की सुरक्षा एवं भेदभाव को दूर करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने अनेको कानून (अधिनियम) बनाये हैं। 1956 में हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, जो पैतृक सम्पत्ति में लड़का -लड़की को बराबर का हिस्सेदारी प्रदान करता है। 1956 में ही अनैतिक देह व्यापार अधिनियम। 1961 में दहेज निषेध अधिनियम-जिसमें दहेज लेना व देना दोनों अपराध की श्रेणी में आता है। 1986 में महिलाओं का अश्लील प्रतिनिधित्व ( रोकथाम) अधिनियम,-जिसमें स्ञीयों को प्रदर्शन की वस्तु बनाये जाने की मनाही है। 1987 में सतिप्रथा अधिनियम। 1990  में राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, जो काफी ‌सक्रिय भूमिका निभा रही है। 2005 में धरेलू हिंसा अधिनियम। 2013 में कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीडन (रोकथाम) अधिनियम के साथ ही 2015 में -"बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ" की शुरुआत।                    उक्त सभी कानूनों (विधेयकों) का औचित्य तब है,जब आमजनों की मानसिकता में ब्यापक बदलाव लाया जा सके। महिलाओं पर सदियों से भेदभाव, शोषण, अत्याचार पश्चिमी सभ्यता, संस्कृति, संस्कार का परिणाम है। भारतीय प्राचीनसनातन संस्कृति सभ्यता संस्कार परम्पराओं में स्ञीयों को देवी- माता जैसे शब्दों से जाना पहचाना जाता रहा है। आक्रमणकारियों, लुटेरों, विदेशी शासकों ने भारतीय प्राचीन धर्म ग्रंथों के साथ साथ प्राचीन परम्पराओं को भी छिन्न-भिन्न किया है। भारतीय अर्थव्यवस्था, सामाजिक जीवन, शिक्षा व्यवस्था के साथ साथ अपनी भाषा , संस्कृति सभ्यता संस्कार परम्पराओं को पुनर्जीवित किये जाने की आवश्यकता है। विश्वास के साथ हम कह सकते हैं कि भारत की बालिकाएं--*" आंगन से लेकर अंतरिक्ष तक भारत की परचम लहरायेंगी।

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