अकेले ही कोरोना रोकने की जिम्मेदारी उठा रहा रेलवे महकमा, वास्तविक स्थिति कुछ और...

अकेले ही कोरोना रोकने की जिम्मेदारी उठा रहा रेलवे महकमा, वास्तविक स्थिति कुछ और...
अंकित जायसवाल
मुम्बई। भारतीय रेलवे ने अकेले ही कोरोना के खात्मे की जिम्मेदारी उठा रखी है। यही हाल मुम्बई लोकल का भी है लेकिन वास्तविक तस्वीर कुछ और ही है। बात अगर मुम्बई लोकल की करें तो यहाँ सेट्रल, वेस्टर्न रेलवे के सभी प्लेटफार्म पर भारी भीड़ उमड़ रही है जैसे आम दिनों में रहा करती है। कुछ ही प्लेटफार्म ऐसे है जहाँ पर भीड़ थोड़ी कम है। रिपोर्ट्स के मुताबिक लोकल ट्रेनों से प्रतिदिन 17-18 लाख लोग यात्रा कर रहे हैं। 

आम जनता के लिए हो रही परेशानी
प्रतिदिन रोजी रोटी के लिए यहां से वहां ट्रेन से सफर करने वाले लोगों को सबसे अधिक दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। कोरोना के नाम पर वह अपने आप को ठगे महसूस कर रहे हैं। क्योंकि अगर वाकई कोरोना के नाम पर ट्रेन में इतने नियम कानून बनाये गए है तो उसका पालन क्यों नहीं कराया जा रहा है। 

कहीं पर भी नहीं हो रहा नियमों का पालन
टिकट विंडो के सिवाय कहीं पर भी नियमों का पालन नहीं हो रहा है। टिकट विंडो पर बकायदे आपका आईडी कार्ड चेक करते हैं और अपने विवेक के अनुसार जिसे टिकट देना होता है देते हैं अन्यथा वापस कर देते हैं। टिकट विंडो के ठीक सामने सोशल डिस्टेंसिंग की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है जिसे कोई रोकने वाला नहीं है। एक दो को छोड़ कोई भी सैनिटाइजर का प्रयोग करता दिखाई नहीं देता। 

दूरी कम, भीड़ अधिक, पैसे ज़्यादा देने में छूट रहे पसीने
महाराष्ट्र में रहने वाले लोगों को सबसे अधिक समस्या हो रही है। जिन्हें टिकट नहीं मिल रहा वो लोग बस से यात्रा करने को मजबूर हैं। बस में भी खचाखच भीड़ हो रही है, जिससे महाराष्ट्र सरकार का राजस्व बढ़ रहा है लेकिन कोरोना की गाइडलाइन का कोई पालन नहीं हो रहा है, इसकी तरफ सरकार और प्रशासन आंख पर पट्टी बांधकर बैठी हुई है। 

बेटिकट यात्रा करने को मजबूर हैं लोग
जिन्हें टिकट नहीं मिल रहा वो अब कतार में नहीं लगते सीधे ट्रेन में घुसते हैं और जहां जाना होता है बड़े आराम से चले जाते है। अगर टिकट के लिये चेकिंग करने लगेंगे तो वहीं शाम होने लगेगी। रोज़मर्रा के काम करने वाले लोग अक्सर यही कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर वो बस से जाएंगे तो जितना उनका पगार है उतना तो वो बस वाले को दे देंगे और टाइम से काम पर पहुँचेंगे भी नहीं ऐसे में उन्हें परिवार चलाना भारी पड़ेगा। 

महिलाएं कर रहीं पुरुषों की मदद
हर स्टेशन पर महिलाओं की पंक्ति पुरुषों से अधिक है, जिसमें 90 प्रतिशत से अधिक महिलाएं सफर कर रहीं हैं जिन्हें कहीं न कहीं जाना होता है, लेकिन 10 प्रतिशत महिलाएं अपने पति और घर के सदस्यों को ट्रेन टिकट लेकर दे दे रहीं है ताकि परिवार चलाने में समस्या न हो। दूसरों के सामने हाथ फैलाने से अच्छा है कि जहां जॉब है वहाँ काम करके आराम से जीवन यापन कर सकें। बस से सफर करेंगे तो टाइम बहुत लग जाता है और पैसे भी बहुत लगते है। 

सिर्फ कुछ ही लोगों को चेक करते हैं जिम्मेदार
लोकल ट्रेन में यात्रा करने वाले लगभग 17-18 लाख लोग हैं। भीड़ जब बाहर निकलती है तो भागते दौड़ते अपने अपने काम पे जाने के लिए जद्दोजहद करती है। अब उन्हीं लोगों को टीईटी चेक कर पाते है जो उन्हें थोड़ा नए लगते है क्योंकि अधिकाधिक संख्या में निकलने वाले यात्रियों को चेक कर पाना संभव नहीं है।

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