जब आवे सन्तोष धन, सब धन धूरि समानः डा. रजनीकान्त

जौनपुर। आदि गंगा गोमती तट पर स्थित गोकुल घाट पर विगत गुरुवार से चल रहे कथा के विश्राम दिवस पर कथा का वर्णन करते हुए कथा व्यास डा. रजनीकान्त द्विवेदी ने कहा कि जब आवे सन्तोष धन, सब धन धूरि समान। सुदामा जी दरिद्र नहीं थे। दरिद्र वह होता है जो असन्तोषी हो। श्री सुदामा विपन्न व परम संतोषी थे। सुदामा चरित्र का मार्मिक वर्णन सुनकर उपस्थित श्रोतागण मंत्र-मुग्ध हो गये। कथा में मुरलीधर नन्द लाल के  मार्मिक चरित्रों के वर्णन से श्रोता भाव-विभोर हो उठे। उपस्थित जनमानस को भाग्योदयेन बहुजन्म समर्जितेन, सत्संगमम च लभते पुरुषों यदा वै’ का महात्म बताया गया तो सम्पूर्ण वातावरण भक्तिमय हो उठा। इसी प्रकार पूरे सप्ताह अलग-अलग प्रसंगों पर कथा वाचन हुआ जहां संगीतमय प्रवचन में आकर्षक झांकियों का भी आयोजन हुआ। इस अवसर पर भाष्कर पाठक, यादवेंद्र चतुर्वेदी, राजाराम त्रिपाठी, अखिलेश पाण्डेय, निखिलेश सिंह, विजय सिंह, शशांक सिंह, मोती लाल यादव, कृष्ण कुमार जायसवाल, आशीष यादव, संजय पाठक अवनींद्र तिवारी, प्रताप सिंह, रघुवीर तिवारी आदि उपस्थित रहे। पूजन का कार्य निशाकान्त व आचार्य सुदर्शन ने सम्पन्न कराया। कार्यक्रम का संचालन अनिल अस्थाना ने किया।

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