बज़्म-ए-हफ़ीज़ जौनपुरी के तहत ज़िया-ए-ग़ज़ल का विमोचन

बज़्म-ए-हफ़ीज़ जौनपुरी के तहत ज़िया-ए-ग़ज़ल का विमोचन

जौनपुर यूपी
अजवद क़ासमी

नगर के मोहल्ला रिज़वी खां में नयी सामाजिक और साहित्यिक बज़्म 'हफ़ीज़ जौनपुरी' के नाम से नयी संगठन के स्थापित और परिचयात्मक कार्यक्रम में शायर क़ारी इश्तियाक अहमद ज़िया जौनपुरी का कविता संग्रह 'जिया-ए- ग़ज़ल' का विमोचन हाजी तुफ़ैल अंसारी द्वारा किया गया। जिसकी अध्यक्षता जामिया ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन के चैयरमैन मौलाना अनवार अहमद क़ासमी ने किया और मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व सदस्य विधानसभा जौनपुर अरशद खान और विशिष् अतिथि अनवारुल हक़ 'गुड्डू' उपस्थित रहे।

इस अवसर पर बज़्म-ए-हफ़ीज़ जौनपुरी का गठन करते हुए अध्यक्ष असीम मछ्ली शहरी ने अजवद क़ासमी को उपाध्यक्ष,महासचिव अमृत प्रकाश,'सर जौनपुरी', सचिव शेहरत जौनपुरी,कोषाध्यक्ष मोनिस जौनपुरी,को नियुक्त किया गया। और बज़्म के सभी सदस्यों ने अतिथियों का स्वागत किया। प्रोग्राम का संचालन मज़हर आसिफ़ ने किया।

मौलाना अनवर अहमद कासमी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि हफ़ीज़ जौनपुरी एक ऐसे शायर थे जिनका नाम लेते ही उनका ये शेर बैठ जाता हुँ जहाँ छाओं घनी होती है- हाय क्या चीज़ ग़रीबुल वतनी होती है ज़बान व दिमाग़ में आ जाता है और जिसे हर व्यक्ति गुनगुनाने पर मजबूर हो जाता है वैसे तो हफ़ीज़ जौनपुरी के समस्त अशआर क़ाबिल ए तारीफ़ हैं लेकिन इस शेर ने हफ़ीज़ जौनपुरी को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई और आज उनके नाम से जुड़ी बज़्म ए हफ़ीज़ जौनपुरी का गठन करके उन्हें एक नया जीवन दिया गया है।

विमोचन समारोह के बाद एक मुशायरा का आयोजन किया गया जिसमें जौनपुर और बाहरी जिलों के कवियों ने भाग लिया और उनकी कुछ पंक्तियां पाठकों को समर्पित है।

आईना अदल का दे रहा है सदा
असल मुजरिम को पहले सज़ा दीजिये
क़ारी ज़िया जौनपुरी

जो सुबह तलक चश्मे फ़लक रोती रही है
क्या दामन ए गुल पे वही शबनम तो नहीं है
ख़लील इब्न असर जौनपुरी

इख़लास और ख़ुलूस कोई देखता नहीं
सब देखते हैं जिस्म पे कैसा लिबास है
मोनिस जौनपुरी

हमीं को रही है मिटाने की कोशिश
ज़माने से है ये ज़माने की कोशिश
शहज़ाद जौनपुरी

फ़िर तमाम चोरियां तेरी पकड़ने वाला हुँ
मैं जल्द ही तेरी आँखों में गड़ने वाला हुँ
आलम ग़ाज़ीपुरी

जब चली ये हवा क्या से क्या ले गयी
आबरू की रिदा तक उड़ा ले गयी
शोहरत जौनपुरी

सुनहरे हर्फ़ों से तारीख़ जो लिखी गयी थी
वो एक भूली हुई दास्तान हो गयी है
वासिक बदायुनी

सल्तनत कौन तुझको देता है
आ मेरे दिल पे तू हुकूमत कर
अमृत प्रकाश

ए क़ज़ा तेरी इनायत जो हुई है मुझपर
मेरे घर वाले मेरा कपड़ा नया ले आये
असीम मछ्ली शहरी

इसके अलावा डॉ. मसीहा जौनपुरी, हाजी तुफैल अंसारी, अनवारुल हक अनवार जौनपुरी, मौलाना अनवार अहमद कासमी जौनपुरी, सईद आज़मी, अनवर फरीदी, ज़ियाद आज़मी, सैयद तहज़ीब आबिद,अब्दुल रहमान शाहिद, हारून आजमी, हामिद भादवी ने भी अपने अपने अशआर प्रस्तुत किये।

इस अवसर पर अज़ीज़िया लाइब्रेरी के अध्यक्ष और ज़िया-ए- ग़ज़ल के संकलक इरफ़ान जौनपुरी राजू भाई, वरिष्ठ नेता अरशद कुरैशी,कमाल आजमी उपस्थित रहे। अंत में बज़्म हफ़ीज़ जौनपुरी के अध्यक्ष असीम मछली शाहरी ने शायरों और दर्शकों का शुक्रिया अदा किया।

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