सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की चाल,जानिए कांग्रेस को क्यों बता रहे हैं जीरो

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की चाल,जानिए कांग्रेस को क्यों बता रहे हैं जीरो

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में सत्ता की दौड़ में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से मुकाबले के लिए मैदान में उतरे समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की नजर सिर्फ उसी पर नहीं, बल्कि वह तेज कदम बढ़ाते अन्य विपक्षी दलों से भी सतर्क हैं। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सहयोगी रही बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को लगातार खारिज कर रहे सपा मुखिया ने अब कांग्रेस को भी जीरो सीटें मिलने की भविष्यवाणी कर दी है। यह वही कांग्रेस है, जिसके साथ यूपी जीतने के लिए वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश उतरे थे। माना जा रहा है कि अब कांग्रेस को जीरो बताना पूर्व सीएम का राजनीतिक गणित है, क्योंकि प्रियंका गांधी वाड्रा की सक्रियता उनके (सपा) वोटबैंक में हिस्सेदारी की आहट है।

एक से तीन दिसंबर तक सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उस बुंदेलखंड की धरती पर साइकिल चलाने के लिए जमीन टटोली, जहां पिछले लोकसभा व विधानसभा चुनावों में 'फूल' उनके लिए 'कांटा' साबित हुआ है। अबकी दौरे में सपा मुखिया को हर जनसभा में उम्मीद से कहीं अधिक भीड़ मिली, जिसने उनका उत्साह आसमान पर पहुंचा दिया। बुंदेलखंड की बदहाली का आरोप भाजपा सरकार पर मढ़ते हुए दावा किया कि इस बार भाजपा का यहां सफाया हो जाएगा।

कांग्रेस और बसपा से गठबंधन का कड़वा अनुभव साझा कर सपा अध्यक्ष पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि अबकी छोटे दलों के साथ ही गठबंधन करेंगे। यही वजह है कि उनके मंच पर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर, महान दल के अध्यक्ष केशव देव मौर्य और अपना दल (कमेरावादी) की अध्यक्ष कृष्णा पटेल थीं। राष्ट्रीय लोकदल से भी वह हाथ मिला चुके हैं। उन्हें उम्मीद है कि इन छोटे दलों के जातीय समीकरण कांग्रेस और बसपा की तुलना में ज्यादा हितकारी साबित होंगे।

काग्रेस को 'जीरो' बताने का राजनीतिक गणित : कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की उत्तर प्रदेश में बढ़ती सक्रियता पर अखिलेश यादव कहते भी हैं कि 'जनता उन्हें वोट नहीं देगी। आगामी चुनावों में उन्हें जीरो सीटें मिलेंगी।' सपा मुखिया की इस गंभीर टिप्पणी की मायने निकाले जा रहे हैं। माना जा रहा है कि अखिलेश के अलावा विपक्षी दलों में प्रियंका ही अधिक सक्रिय हैं। कई मुद्दों पर उन्होंने अन्य विपक्षी दलों की तुलना में बढ़त बनाई है। चूंकि, सीएए-एनआरसी जैसे मुद्दे पर कांग्रेस ने सड़कों पर आंदोलन किया, इसलिए वह उस अल्पसंख्यक वोटबैंक में सेंध लगा सकती है, जिसके एकजुट वोट से अखिलेश को खासी उम्मीदें हैं। ऐसे में प्रियंका को बेअसर बताकर वह वोटों के बिखराव को रोकना चाहते हैं।

ममता पर भरोसा, वैकल्पिक मोर्चे नर नजर : सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के प्रति पहले से ही नरम रवैया रहा है। बंगाल चुनाव में भी सपा ने तृणमूल के समर्थन में प्रचार का ऐलान किया था। अखिलेश ने पिछले दिनों भी निकटता के संकेत दिए। कहा कि 'मैं ममता बनर्जी का स्वागत करता हूं, जिस तरह से उन्होंने बंगाल में भाजपा का सफाया किया है, उत्तर प्रदेश के लोग भी उसी तरह भाजपा का सफाया कर देंगे।' बंगाल चुनाव में 'खेला होबे' का नारा भी खूब चला था। उसी तर्ज पर सपा ने भी पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में 'खेदेड़ा होबे' का नारा दिया था। एक सवाल पर उन्होंने यह भी कहा था कि ममता के नेतृत्व वाले वैकल्पिक विपक्षी मोर्चे में शामिल होने का विकल्प खुला है। जब सही समय आएगा, तब इसके बारे में बात करेंगे।

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