नवजात को बेचने के पहले नाबाल‍िग दुष्कर्म पीड़‍िता को बना रखा था नौकरानी,महीनों से चल रही जांच

नवजात को बेचने के पहले नाबाल‍िग दुष्कर्म पीड़‍िता को बना रखा था नौकरानी,महीनों से चल रही जांच

सुल्तानपुर। वह अनपढ़ है, नामसमझ है और समाज के उस वर्ग से आती है जो समाज की मुख्यधारा से जुडऩे को संघर्षरत है। उसकी इसी विवशता का लाभ उन दानवों ने उठाया, जिन्हें मानव नहीं कहा जा सकता है। दोषी वह अधिकारी भी जो जानकारी होने के बावजूद भी महीनों से जांच का दावा कर रहे हैं। सुलतानपुर में जिस नाबालिग दुष्कर्म पीडि़ता का प्रसव करा बच्चा बेचा गया, उसे कई महीनों तक चाइल्ड लाइन की स्वयं सेविका तारा शुक्ला ने घर में नौकरानी बनाकर रखा था।

चाइल्ड लाइन में परियोजना समन्वयक संदीप वर्मा उसे धमकी देकर रुपये भी वसूलता था। इसकी जानकारी जिम्मेदार विभागों को काफी दिनों पहले हुई, लेकिन दोषियों पर कार्रवाई की बजाए मामले को जांच में उलझा कर रखा गया है। न तो कोई मुकदमा दर्ज कराया गया और न ही उन्हें पकडऩे का प्रयास किया गया।

गरीब व अनपढ़ है पीडि़ता : किशोरी का परिवार अनुसूचित जनजाति का है। भिक्षाटन करके परिवार का गुजारा होता है। परिवार के सभी सदस्य अनपढ़ हैं। इसी का फायदा उठाकर चाइल्ड लाइन के शातिर कर्मियों ने घटना को अंजाम दिया। वहीं जांच में पता चला है कि संदीप वर्मा पीडि़ता के घर गया और धमकी दी कि इसका पालन पोषण ठीक से नहीं हो रहा है। गर्भवती होने के बाद भी जमीन पर सोती है। कुछ हो गया तो सब फंस जाओगे। फिर चाइल्ड लाइन बुलवाया और कहा अब इसकी जिम्मेदारी चाइल्ड लाइन उठाएगा। फल मेवा व रहन-सहन की जिम्मेदारी सरकारी हो गई है, उसके बाद तारा शुक्ला अपने घर कुड़वार के देवलपुर गांव ले गई।

'पीड़ि‍ता बताती है कि उसे नौकरानी की तरह रखा गया। घर का झाड़ू-पोंछा सारा काम करवाया जाता था। अछूत मानकर खाना नहीं बनवाते थे। पीड़‍िता की मां ने यह भी बताया है कि संदीप कई बार अन्य लोगों के साथ नशे में उसके डेरे पर आकर रुपये वसूल चुका है। 

फर्जी नाम से भर्ती कराया, प्रसव होते ही ले गए नवजात : चुनहां के साकेत हास्पिटल में तारा शुक्ला ने पीडि़ता के नाम को बदलकर रेनू गुप्ता व चाइल्ड लाइन का केस बताकर भर्ती कराया था। पहचान पत्र मांगने पर यह भी कहा कि इसके पास कुछ नहीं है। आपरेशन के बांड पर तारा ने ही दस्तखत किए थे। पता चला है कि सुबह करीब छह बजे भर्ती होने के कुछ घंटों बाद आपरेशन से बेटा पैदा हो गया था। इसके तुरंत बाद तारा उसे लेकर जिला अस्पताल दिखाने के बहाने लेकर चली गई थी। सप्ताहभर भर्ती रहने के दौरान संदीप वर्मा भी वहां आता जाता रहा।

कार्रवाई की बजाय जांच दर जांच में उलझे जिम्मेदार : पांच माह तक तारा की कस्टडी में रहने के दौरान न तो प्रोबेशन महकमा उसका फालोअप कर सका न ही बाल कल्याण समिति को कोई खबर लगी। फिर अक्टूबर में वह काउंसलर गीता वर्मा के संपर्क में आई। पूछताछ में सारी कहानी पीडि़ता व उसके माता-पिता ने सुनाई। फालोअप रिपोर्ट प्रोबेशन अधिकारी के माध्यम से बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) को एक महीने पहले ही भेज दी गई थी, लेकिन किसी ने इस गंभीर मामले में दोषियों को पकड़वाने व पीडि़ता को न्याय दिलाने का प्रयास नहीं किया। केवल गोसाईंगंज थाने को जांच के लिए लिखा गया। जब से एसओ संदीप राय ने पीडि़ता उसके मां-बाप से बयान लिए और अस्पताल जाकर जांच शुरू की है तब से हड़कंप मचा हुआ है।

डीएम और एसपी से भी मामला छिपाया : बताया जाता है कि नवंबर माह में ही डीएम रवीश गुप्ता और एसपी डा. विपिन कुमार मिश्र, प्रोबेशन, जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड व बाल कल्याण समिति व अन्य अफसरों के साथ बच्चों के कल्याण संबंधी बैठक कलेक्ट्रेट में हुई थी, लेकिन पीडि़ता के साथ हुई शर्मनाक करतूत की जानकारी आला अफसरों को नहीं दी गई। पुलिस अधीक्षक डा.विपिन कुमार मिश्र ने बताया कि मामले में सभी बि‍ंदुओं पर जांच चल रही है, जो भी दोषी होगा उसके विरुद्ध कार्रवाई होगी।

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