जरा याद करो कुर्बानी...


भारत की पहली गदर क्रान्ति का गवाह शहीद स्मारक सेनापुर
अंधेरे में राष्ट्रीय ध्वज का फहरना चर्चा विषय, प्रशासन व जनप्रतिनिधि मौन
केराकत, जौनपुर। स्थानीय क्षेत्र के सेनापुर गांव में जंग-ए-आजादी की लड़ाई में दीवान-ए-खास रहे अमर शहीदों की याद में बने शहीद स्तम्भ और फहराता रास्ट्रीय ध्वज इतिहास के पन्नों में चार चांद लगा रहा है। वहीं रात्रि अंधेरे में ध्वज का फहराना ग्रामीणों के मन पर बोझ सा लगता है। गौरतलब है वर्ष 1857 ई में भारत की पहली गदर क्रांति मे भारत को आजाद कराने में डोभी क्षेत्र के रणबांकुरों ने बढ़-चढ़ हिस्सा लिया जिसका गवाह सेनापुर गांव में बना शहीद स्मारक हैं। डोभी की लड़ाई भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी लड़ाईयों में से एक है जहाँ एक पेड़ पर एक ही दिन एक ही समय 23 रणबांकुरों को फांसी दी गयी थी परंतु भारतीय इतिहास के पन्नों में अतीत बनकर रह गई हैं। 23 शहीदों में से सिर्फ 15 शहीदों के नाम का उल्लेख स्तम्भ पर लगे शिलापट्ट पर अंकित है। वहीं 8 शहीदों के नाम इतिहास के पन्ने में गुम हो गये। शहीद स्तम्भ पर लगे शिला पट्ट पर यदुवीर सिंह, दयाल सिंह, शिवव्रत सिंह, जय मंगल सिंह, रामदुलार सिंह, अभिलाष सिंह, देवकी सिंह, जगलाल सिंह, ठाकुर सिंह, शिवराम अहीर, किशुन अहीर, माधव सिंह, विश्वेसर सिंह, रामभरोस सिंह, एवं छांगुर सिंह क्रांतिकारियों का नाम अंकित है। गांव के ही विनोद कुमार के कई वर्षों के संघर्षों के बाद प्रशासन का ध्यान जीर्ण-शीर्ण अवस्था मे पड़े शहीद स्तम्भ पर पड़ी  ततपश्चात क्षेत्र पंचायत व ग्राम पंचायत निधि से शहीद स्मारक का जीर्णोद्धार के साथ ही परिसर में 51 फिट ऊँचा तिरंगा प्रशासन द्वारा लगाया गया जो लगातार नीले मखर तले फहराकर शहीदों के आजाद भारत के सपने को साकार कर रहा है परंतु अफसोस होता हैं कि रास्ट्रीय ध्वज रात के अंधेरे में फहरने को मजबूर हैं। जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों का ध्यान रात में फहर रहे राष्ट्रीय ध्वज की तरफ नहीं जाता जो एक तरह से शहीदों के शहादत की उपेक्षा कहें तो सही होगा। देखने वाली वात है कि 51 फीट का राष्ट्रीय ध्वज प्रतिदिन फहराया जाता है और अंधेरे में ध्वज फहराना ग्रामीणों को भी अटपटा लग रहा है।

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