शाहगंज विस सीट पर सपा के तिलिस्म को तोड़ने में जुटा गठबंधन

खेतासराय, जौनपुर। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अंतिम चरण में जौनपुर का चुनाव होगा। जनपद में 9 विधानसभा सीट हैं। हर सीट पर लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपना प्रत्याशी मैदान में उतारा है जिसमें हम बात कर रहे हैं जिले की सबसे चर्चित सीट शाहगंज विधानसभा क्षेत्र की। इस सीट पर समाजवादी पार्टी का 2002 से लगातार अब तक दबदबा कायम है। वर्तमान में सपा से शैलेंद्र यादव ललई 4 बार से विधायक हैं और 5वीं बार सपा के सिम्बल पर ताल ठोंक रहे है। इस बार विधानसभा चुनाव में सपा ने एक बार फिर से ललई पर विश्वास जमाते हुये टिकट देकर मैदान में उतारा है। वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी और निषाद पार्टी से गठबंधन के उम्मीदवार रमेश सिंह मैदान में हैं।
इस सीट पर आमने-सामने की लड़ाई मानी जा रही है जिसमें गठबंधन बनाम सपा की लड़ाई मानी जा रही है। प्रत्याशी अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। इस बार लड़ाई बड़ी दिलचस्प रहेगी। बहुजन समाज पार्टी से उम्मीदवार इंद्रदेव यादव वोटों की सेंधमारी करते हुए जीत की दावेदारी कर रहे हैं तो कांग्रेस ने परवेज आलम भुट्टो को चुनावी मैदान में उतारकर अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगाकर किस्मत आजमाइश कर रही है। सभी अपने हिसाब से मतदाताओं को रिझाने में पूरी तरह से जुटे हुए हैं। ज्यों-ज्यों मतदान की तिथि करीब आ रही है, त्यों-त्यों प्रत्याशियों की धड़कनें तेज होने लगी हैं। जोड़-तोड़ की राजनीति चरम पर है। यह सीट यादव बाहुल्य मानी जाती है। ऐसे में सपा अपना किला बचाने का पूरा प्रयास कर रही है।
वहीं दूसरी तरफ गठबंधन प्रत्याशी रमेश सिंह मजबूत घेराबंदी के साथ सपा के अभेद्य किले को भेदने की कोशिश में जुटे हुए हैं। शाहगंज सीट पर विधानसभा गठन के बाद से वर्ष 1974 तक कांग्रेस का वर्चस्व रहा लेकिन 1977 में हुए चुनाव में जेएनपी से उम्मीदवार रहे छोटे लाल ने कांग्रेस के उम्मीदवार लालता प्रसाद को पराजित करके कांग्रेस के इतिहास को बदलने में कामयाब रहे। इसके बाद वर्ष 1980 में हुये चुनाव में कांग्रेस (आई) से उम्मीदवार रहे पहलवान रावत ने दीपचन्द्र सोनकर (जेएनपी) को हराकर एक बार फिर कांग्रेस की झोली में इस सीट को डाल दिया लेकिन तब से लेकर अब तक इस सीट पर कांग्रेस कब्जा जमाने के लिए तरसती रही है। इस बार कांग्रेस ने पहली बार इस सीट पर अल्पसंख्यक कार्ड खेलते हुए अपना उम्मीदवार परवेज आलम भुट्टो को बनाकर अपनी खोई जमीन तलाशने की कोशिश कर रही है।
वर्ष 1991 में भाजपा प्रत्याशी राम प्रसाद रजक उर्फ नाथे ने बसपा प्रत्याशी रामदवर को हराकर पहली जीत दिलाई थी। उसके बाद वर्ष 1996 भाजपा से बांके लाल सोनकर इस सीट से विधायक रहे। तब से लेकर अब तक भाजपा इस सीट पर जीत के लिए काफी मशक्कत कर रही है लेकिन कमल खिलाने में सफल नहीं हो पाई। वहीं इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी ने वर्ष 1993 में रामदवर को मैदान में उतारा था जिसमें भाजपा उम्मीदवार मंजुलता को हराकर बसपा ने अपना पहला खाता खोला था। तब से लेकर दोबारा इस सीट बसपा को नसीब नहीं हो सकी। जैसे हाथी रास्ता भटक गया हो।
इस बार बसपा से इंद्रदेव यादव मैदान में हैं। अगर हम बात करें इस सीट की तो वर्ष 2002 से लगातार सपा के कब्जे में होती चली जा रही है। इस सीट पर दो बार जगदीश सोनकर विधायक रह चुके हैं और दो बार शैलेंद्र यादव ललई। इस बार सपा ने पुनः टिकट देकर मैदान में उतारी है तो ललई अपनी जीत की हैट्रिक लगाकर सपा को 5वीं बार जीत दिलाकर अपना राजनीतिक किला बचाने के साथ अपनी प्रतिष्ठा बचाने की कोशिश कर रहे हैं। अब सवाल यह है कि क्या सपा का किला बचा पाते हैं या अन्य प्रत्याशी द्वारा किला भेद दिया जाता है, यह तो भविष्य के गर्भ में है।

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