दवा लेते-लेते बने रिश्ते से जीविकोपार्जन की राह हुईआसान

जरदोजी, सिलाई-कढ़ाई व  कम्प्यूटर सीख पूरी कर रहीं जरूरतें, लोगों से मिल रही सराहना

ठाकुरबाड़ी महिला विकास कल्याण समिति क्षयरोग के उपचार तथा कौशल संवर्धन में कर रही मदद

जौनपुर, 03 जुलाई 2022

पहले डेजिग्नेटेड माइक्रोस्कोपिक सेंटर (डीएमसी) के माध्यम से तथा बाद में गैर सरकारी संस्था (एनजीओ) के रूप में क्षयरोगियों की सेवा की । ठाकुरबाड़ी महिला विकास कल्याण समिति कम्प्यूटर सेंटर, सिलाई-कढ़ाई व जरी-जरदोजी का काम भी सिखाया। डीएमसी/एनजीओ के सहयोग से ज्यादातर गरीब परिवारों ने इलाज कराया। इस दौरान बने रिश्ते का लाभार्थियों ने भरपूर उपयोग किया। जरी-जरदोजी, सिलाई-कढ़ाई और कम्प्यूटर का काम सीखा और तैयार किए सामानों को संस्था के सहयोग से बाजार पहुंचाया। उनकी कारीगरी की जिलाधिकारी की पत्नी डॉ अंकिता राज भी प्रशंसक हैं। उन्होंने कुशन और डुपट्टा का भी आर्डर दिया। सरस मेले में भी उनका सामान पसंद किया गया। 

    सिंगरामऊ की गुलनाज (35) की 17 वर्ष पहले और रूबीना (38) की 12 साल पहले समिति के ही डीएमसी पर बलगम की जांच हुई जिसमें क्षयरोग की पुष्टि हुई।  डीएमसी से हुई दवा से ही वह ठीक हुईं। इलाज के दौरान ही समिति के लोगों से उनकी आत्मीयता बनी और केंद्र सरकार के हस्तशिल्प विभाग से जोड़कर उनका शिल्पी कार्ड बनवाया गया। जरी-जरदोजी, सिलाई-कढ़ाई सहित विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण लेकर वह कुशल कारीगर बनीं। कुशन पर कढ़ाई, डुपट्टा, वाल हैंगिंग, रूमाल, तकिया, गिलाफ बनाने लगीं। उनके सामान वाराणसी और जौनपुर के सरस मेले में भेजवाये गये। सिंगरामऊ के समिति के दफ्तर पर आठ नवम्बर 2021 से 10 दिसम्बर 2021 तक जरी-जरदोजी की कार्यशाला चली। कार्यशाला के समापन पर आईं जिलाधिकारी की पत्नी डॉ अंकिता राज ने कुशन और डुपट्टा पर उनके हाथों की कारीगरों को खूब सराहा और आर्डर देकर मंगवाया।

सिंगरामऊ की प्रज्ञा मौर्या (25) को तीन साल पहले और पूर्णिमा मौर्या (19) को सालभर पहले क्षयरोग हुआ। समिति के सहयोग से उनका इलाज चला और इलाज में एक पैसा खर्च नहीं हुआ। हर महीने 500 रुपये पोषण के लिये मिले। पोषण किट में मिले काजू-बादाम आदि सामानों ने उनके पोषण में मदद की। वह स्वस्थ हुईं तो समिति ने ही कम्प्यूटर कोर्स, सिलाई-कढ़ाई और जरी-जरदोजी का काम सिखाया। अब वह खुद से ही परीक्षा संबंधी फार्म आनलाइन भर लेती हैं। अपना कपड़ा खुद से सिल लेती हैं। उसपर कढ़ाई कर लेती हैं। पास-पड़ोस के लोगों से भी सिलाई का आर्डर लेती हैं और उसके पैसे से अपनी फीस भर लेती हैं और किसी भी परीक्षा के लिए भरने वाले फार्म के लिए घर से पैसे नहीं लेती हैं।

   रामगंज के पास गंजा निवासी शारदा (30) तथा उनके पति कल्लो (30) विकलांग हैं। पांच वर्ष पहले उनका यहां से इलाज हुआ। महिला विकास कल्याण समिति ने ही उनका विकलांग का सर्टिफिकेट बनवाया। अधिकारियों से सम्पर्क कर उनकी आर्थिक मदद करवाई। खानपान में मदद की तथा हर बार आने जाने का भाड़ा दिया।  
   यह तो कुछ गिने-चुने उदाहरण हैं। बड़ी संख्या में लोग ठाकुर बाड़ी महिला विकास कल्याण समिति के सहयोग से क्षयरोग से पूरी तरह मुक्त हुए और समिति में ही प्रशिक्षण लेकर खुद की आर्थिक मदद करने में सक्षम हुईं। संस्था की अध्यक्ष अंजू सिंह बताती हैं कि 2004 से 2017 तक समिति डेजिग्नेटेड माइक्रोस्कोपिक सेंटर (डीएमसी) तथा ट्रीटमेंट एडहरेंस स्कीम के तहत ढाई से 3,000 के बीच संभावित क्षयरोगियों की जांच और उपचार में मदद कर चुकी है और वह स्वस्थ हो चुके हैं। 2018 से मार्च 2021 तक अक्षय प्रोग्राम के तहत 400 के लगभग क्षयरोगियों का इलाज कराया गया। संस्था जब क्षयरोग विभाग से नहीं जुड़ी थी तब भी क्षयरोगियों की जांच और इलाज कराने में मदद कर रही थी। क्षयरोग का इलाज कराने के बाद स्वस्थ हुए 200 से ज्यादा लोगों को प्रशिक्षण देकर उन्हें खुद की आर्थिक मदद करने में सक्षम बनाया गया है। 

   जिलाधिकारी की पत्नी तथा आकांक्षा समिति की अध्यक्ष डॉ अंकिता राज कहती हैं कि समिति की महिलाओं के हाथों कुशन और डुपट्टा पर किया गया जरी का काम बहुत ही आकर्षक है। पहली निगाह में किसी को भी आकर्षित कर सकता है। जरी-जरदोजी कार्यशाला में उनके हाथों के बने सामान प्रभावित कर रहे थे, इसलिए मैंने कुशन और डुपट्टा का आर्डर दिया था।

    जिला क्षयरोग अधिकारी (डीटीओ) डॉ राकेश सिंह कहते हैं कि जनपद से क्षयरोग उन्मूलन में ठाकुरबाड़ी महिला विकास कल्याण समिति ने बहुत योगदान दिया है। जनपद में 3,406 क्षयरोगी उपचाराधीन हैं। ऐसे 24 एनजीओ दवा और पोषण में उन्हें मददकर रहीं हैं। सहयोग के दौरान बने संबंधों के चलते लाभार्थी उनके माध्यम से चलने वाली अन्य योजनाओं का भी फायदा उठा रहे हैं। इस वर्ष जनपद में कुल 8,500 क्षयरोगियों की खोज  का लक्ष्य निर्धारित किया गया है जिसमें अब तक 3,400 क्षयरोगियों की खोज की जा चुकी है। 

   मृत्यु दर में गिरावट: क्षयरोग उन्मूलन अभियान के जिला कार्यक्रम समन्वयक सलिल यादव कहते हैं कि विगत वर्षों में क्षयरोगियों की मृत्यु दर में गिरावट आई है। पहले मृत्यु दर पांच प्रतिशत थी जो अब घटकर चार प्रतिशत रह गई है। निक्षय पोषण योजना में क्षय उपचाराधीनों के खाते में डीबीटी के माध्यम से प्रति माह 500 रुपये की धनराशि भेजे जाने की व्यवस्था है। इसके तहत 2021 में कुल 8,486 क्षय उपचाराधीनों को 1,74,55,00 रुपये तथा 2020 में 8,515 उपचाराधीनों  को 2.10 करोड़ की धनराशि का वितरण किया गया। डीबीटी पोर्टल में कुछ तकनीकी दिक्कतों के चलते नवम्बर 2021 से डीबीटी स्कीम के माध्यम से भुगतान नहीं हो पा रहा था जो कि मई 2022 से पुनः संचालित हो गया है। वर्ष 2022 में डीबीटी के माध्यम से जून तक कुल 58 लाख रुपये क्षय रोगियों को निक्षय पोषण योजना के अंतर्गत भेजा जा चुका है।

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