138 वर्षों बाद त्रिनिदाद एण्ड टोबैगो से खोजते हुये पूर्वजों के गांव पहुंचीं सुनीति महाराज

138 वर्षों बाद त्रिनिदाद एण्ड टोबैगो से खोजते हुये पूर्वजों के गांव पहुंचीं सुनीति महाराज
साथ ले गयी मिट्टी, बोलीं' यह मेरे लिये प्रभु का चन्दन है
जौनपुर। मन में हौंसला और जज्बा हो तो मुश्किल राह भी आसान हो जाती है। ऐसे ही कुछ कहानी त्रिनिदाद एंड टोबैगो की रहने वाली सुनीति महाराज की है। दरअसल दशकों से मन में कसक लिए अपने पूर्वजों के गांव की तलाश में लगे सुनीति की मदद गिरमिटिया फाउंडेशन में अध्यक्ष दिलीप गिरी ने किया। सोमवार को काशी से सुनीति आदिपुर गांव के लिए निकली। गांव के मोड़ पर पहुंचते ही परिजनों और गांव के लोगों ने माला फूल पहनाकर ढोल-नगाड़े के साथ स्वागत किया। सुनीति गांव के परिजनों संग मिलकर कुछ पलों के लिए भावुक हो गयीं। उनका मानना है कि बढ़ती उम्र ने भी उनके इस मुश्किल खोज के कदमों को न रोक सकी और उनका सपना साकार हुआ। बताया कि यह कहानी आजादी के पहले अंग्रेजों के शाशन काल में 1885 से शुरू होती है।नारायण दुबे बतौर गिरमिटिया मजदूर 1885 में त्रिनिदाद एंड टोबैगो चले गए थे। अपने जड़ की तलाश में सुनीति ने हिम्मत नहीं हारा। नारायण की परपोती चौथी पीढ़ी से सुनीति अपने चाचा नारायण दुबे के साथ अपने पूर्वजों के आदिपुर गांव पहुंची जहां ग्रामीणों ने परिवार की बेटी का ढोल—बाजे के साथ स्वागत किया। पूर्वजों द्वारा बनवाए गए शिव मंदिर में पूजा करते वक्त सुनीति भावुक हो गईं। आंखों में आसूं लिए सुनीति ने कहा कि यह मेरे खुशी के आंसू है जिसे मैं नहीं रोक सकती। मेरे परदादा इस गांव में मिट्टी से जुड़े थे लेकिन कभी वो गांव लौट कर नहीं आए। गिरमिटिया फाउंडेशन के सहयोग से आज अपने पूर्वजों के पुण्य भूमि पर पहुंचकर धन्य हो गई। गौरतलब है कि भारत में गिरमिटिया वंशियों के पूर्वजों के गांव खोजने में गिरमिटिया फाउंडेशन पिछले 4 साल से काम कर रहा है। फाउंडेशन के अध्यक्ष दिलीप गिरि ने कहा कि अब तक एक सौ से अधिक गिरमिटिया परिवारों को उत्तर प्रदेश और बिहार के कई गांवों तक पहुंचाया है जहां से सैकड़ों वर्ष पहले भारतीय लोगों को अंग्रेज गिरमिटिया मजदूर बनाकर ले गए थे। इस सफलपूर्वक खोज में सीबी तिवारी वं वरिष्ठ पत्रकार अमित मुखर्जी ने भी प्रमुख भूमिका निभाई।

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