जौनपुर के गूलर घाट पे क़दीमी इमामबाड़े में मजलिस ऐ अज़ा को खिताब करते हुए इस्लामिक मुआमलात के जानकार ज़ाकिर ऐ अहलेबैत सय्यद मोहम्मद मासूम ने आज से 1445 वर्ष पहले ज़ालिम बादशाह यज़ीद के खिलाफ इमाम हुसैन के संघर्ष के कारणों पे प्रकाश डाला |
उन्होंने बताया की हमें उन कारणों पर जिज्ञासापूर्वक विचार करना चाहिए जिनके कारण हुसैन (अ.स.) ने अपने 6 महीने के बेटे अली असगर (अ.स.) सहित सब कुछ बलिदान कर दिया। यह हक और बातिल के बीच की लड़ाई थी. | यह अच्छे और बुरे के बीच अंतर करने का एक स्पष्ट आह्वान था। हुसैन (एस) ने अत्याचारी शासक यज़ीद के का साथ नहीं दिया और जुल्म ,अत्याचार के खिलाफ डटकर खड़े रहे। हुसैन (अ.स.) का यज़ीद से बैयत का इंकार उस निरंकुश शासक की घोर त्रुटियों के विरुद्ध था जो इस्लामी व्यवस्था को बदल के ज़ुल्म की तरफ ले जा रहा था। उन्होंने यजीद के दुर्भावनापूर्ण इरादों को हराया जो इस्लाम की पवित्रता को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहा था।
हुसैन (अ.स.) ने कर्बला की लड़ाई अपने अडिग, निश्चल चरित्र और साहस लड़ी क्यूंकि हुसैन (अ.स.) की लड़ाई सत्ता के लिए नहीं थी इसीलिये उनको जब मदीना छोड़ने पे मजबूर किया गया तो वे अपने साथ पूरा परिवार ले के चले | उन्होंने लोगों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में जगाने और जागरूक करने के लिए संघर्ष किया क्योंकि वे नैतिक रूप से मर चुके थे। हुसैन (अ.स.) ने अपनी शहादत से प्रख्यात विजय हासिल की। यज़ीद तो मिट गया लेकिन हुसैन (अ.स.)आज भी उत्पीड़ितों के लिए आशा और मार्गदर्शक के प्रतीक के रूप में आज भी हमारे दिलों में ज़िंदा हैं।
शायद यही कारण है की मुहर्रम का चाँद होते ही पहली मुकर्रम से सवा दो महीने पूरी दुनिया में लोगों को इमाम हुसैन का ग़म मनाते और शहादत पे आंसू बहाते देखा जा सकता है | यह दुःख या श्रद्धांजलि कभी मजलिस की शक्ल में दिखती है तो कभी जुलूसों के शक्ल में जिसमे उन शहीदों से जुडी निशानियों अलम ,ताज़िया इत्यादि साथ लिए नौहा और मातम करते लोगों की शक्ल में दिखाई देती है | और यह एक ऐसा दुःख है जिसमे हर धर्म के लोग साथ रहते हैं |
मुंशी लछमण नारायण सखा लिखते हैं
नज़र आ जाती है बज़्म ऐ अज़ा से राह जन्नत की
शहीद ए कर्बला के ग़म में जब रो कर निकलते हैं
इमाम हुसैन अ.स और उनके साथी जिन्होंने कर्बला में इमाम हुसैन शहादत दी आज भी हमारे लिए आदर्श हैं , जिनके चरित्र और की हमें प्रशंसा करनी चाहिए और उनके जैसा बनने की आकांक्षा करनी चाहिए।इमाम हुसैन अ.स की दयालुता और उदारता का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है की दुश्मन के लश्कर को गर्म रेगिस्तान में जब प्यासा देखा तो उन्हें और उनके जानवरों को भी पानी पिलाया |जब इमाम हुसैन अ.स का एक गुलाम जॉन शहीद हुआ जो की रंग में काला भी था तो इमाम हुसैन ने जंग में उसके गाल मिला के उससे प्रेम किया और मनाव जाती को अत्यंत श्रद्धा और समानता का पैगाम दिया |
कर्बला में इमाम हुसैन (अ स ) का परिवार शहीद होता रहा जवान बेटा मारा गया जवान भाई मारा गया , दोस्त गए ,6 महीने के बेटे अली असगर को भी ज़ालिमों ने शहीद कर दिया लेकिन इमाम हुसैन ने दैर्य का साथ नहीं छोड़ा और ज़ालिम यज़ीद की बादशाहत की नीव को हिलाते हुए ज़ुल्म से लोगों को बचाते हुए शहीद हो गए | हमें कर्बला के सबक को आत्मसात करते हुए अच्छाई की तरफ इंसानियत की तरफ लोगों को बुलाते हुए समाज में बुराइयों के खिलाफ , ज़ुल्म के खिलाफ आतंकवाद के खिलाफ इमाम हुसैन के मिशन को आगे बढ़ाते रहना चाहिए क्यों की यही मार्ग शांति, संतुष्टि, सफलता और मोक्ष का मार्ग है||
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