जौनपुर के डा. जयेश सिंह ने पूर्वांचल के चिकित्सा जगत में रचा इतिहास


 जौनपुर के डा. जयेश सिंह ने पूर्वांचल के चिकित्सा जगत में रचा इतिहास

नवजात रोग विशेषज्ञ ने 600 ग्राम की नवजात को उपचार के बाद किया ठीक
परिजनों ने कहा— डा. जयेश ने बच्ची को दूसरा जन्म दिया
गम्भीर बीमारी से ग्रसित बच्चों के परिजन घबरायें नहीं: डा. जयेश
जौनपुर। पूर्वांचल के चिकित्सकीय इतिहास में जिला मुख्यालय पर स्थित त्रिभुवन सिंह मेमोरियल हॉस्पिटल के नवजात रोग विशेषज्ञ डा0 जयेश सिंह ने नया कीर्तिमान स्थापित किया। उन्होंने 3 माह पूर्व पैदा हुई मात्र 600 ग्राम की अर्धविकसित बच्ची को पूरी तरह ठीक कर मां की गोद हरा-भरा करके घर भेज दिया। नवजात की जिन्दगी से निराश हो चुके परिजन बच्ची का नया जीवन पाकर खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं।
बता दें कि समीपवर्ती जनपद आजमगढ़ के गम्भीरपुर स्थित नगवां निवासी सुनील चौहान की गर्भवती पत्नी नगर के खुरचनपुर में स्थित अपने मायके रहकर उपचार करा रही थी। वह गर्भवस्था की हाई बीपी से ग्रसित थी जिसका उपचार नगर के महिला रोग विशेषज्ञ डा0 शैली निगम कर रही थीं। डॉप्लर अल्ट्रासाउंड से पता चला कि मां को बीपी की समस्या (प्रीक्लेम्पसिया) होने से बच्चे को ब्लड की सप्लाई कम हो रही है जिससे उसका विकास नहीं हो पा रहा है। ऐसे में अगर बच्चे को बाहर नहीं निकाला गया तो जच्चा—बच्चा के जान का खतरा है परन्तु समस्या यह थी कि इतने अल्प विकसित बच्चे की जान कैसे बचायी जाय? इस तरह के बच्चों को मां के गर्भ से बाहर निकलने के पश्चात बचने की संभावना नगण्य होती है।
फिलहाल डॉ जयेश और डॉ शैली ने परिजन से सभी सम्भावनाओं पर बात करते हुये बताया कि बच्चे को मां के गर्भ में किसी राष्ट्रीय स्तर के संस्थान में डिलवरी कराना हो तो बच्चे के बचने की संभावनाएं बढ़ जायेगी। परिवार वालों ने किसी बड़े शहर में जाने की असमर्थता जताई और ईश्वर का नाम लेकर यहीं डिलवरी करने का निर्णय लिया। मां को एक विशेष प्रकार का इंजेक्शन देकर, जिसे बच्चे का फेफड़े मजबूत होते हैं, बीते 6 अप्रैल को महिला का ऑपरेशन किया गया। नवजात का वजन मात्र 680 ग्राम ही था जो 3 दिनों के पश्चात अपने न्यूनतम 600 ग्राम तक पहुंच गया जबकि जन्म के समय स्वस्थ नवजात का उम्र औसत ढाई किलो होना चाहिए।
डा. जयेश ने बताया कि वह पूरी टीम के साथ जन्म के पूर्व उपस्थित थे। जन्म पर बच्ची स्वांश नहीं ले रही थीं अपने साथ लाये यन्त्र के माध्यम से बच्ची को स्वांस दी गयी जिसके बाद त्रिभुवन सिंह मेमोरियल हॉस्पिटल के आईसीयू में शिफ्ट किया गया। बच्ची की हालत काफी सीरियस थी। परिजनों के आग्रह पर डा0 सिंह ने उस अविकसित नवजात अपने अस्पताल में उपचार हेतु भर्ती कर उपचार शुरू कर दिया। लगभग 3 माह पहले पैदा हुई नवजात पूर्ण रूप से विकसित नहीं थी। उसके प्रत्येक अंगों में ऑक्सीजन की कमी के लक्षण दिख रहे थे। सांस में भी दिक्कत थी। हृदय की नली में दिक्कत के चलते बार—बार स्वांस रोकने की दिक्कत व गर्भ में ऑक्सीजन कमी के कारण आंत फटने का भी डर था। आंतों को फटने से बचाने के लिए सबसे बड़ा चैलेंज  निर्धारित मात्रा में केवल मां का दूध देना है।
डा. सिंह ने बताया कि ऐसे बच्चों में आंखों की नसों का पूर्ण विकसित न होने से अन्धापन होने की संभावना 80 फीसदी से ज्यादा होती है। शुरूआती तौर पर बच्चे को स्वांस की छोटी मशीन पर रखा गया। बताते चलें कि इस तरह के अविकसित बच्चों में फेफड़े विकसित न होने से विशेष प्रकार का महंगा इंजेक्शन जिसे सरफसटेंट कहते हैं, की आवश्यकता नहीं पड़ी। इसका प्रमुख कारण डिलेवरी के पहले मां को दिया गया विशेष इंजेक्शन और डिलेवरी रूम में सी पैप का उपयोग था| जैसा कि आंतों में आक्सीजन की कमी से सूजन थी और शुरुआती दिनों में दूध नहीं दिया जा सकता है। इसके लिये नसों द्वारा ताकत का इंजेक्शन दिया जाने लगा। तीसरे दिन से मां का दूध नालियों से दिया जाने लगा। प्रथम दो सप्ताह दूध न पचने से दूध को रोकना भी पड़ा। आश्चर्यजनक रूप से बच्ची 3 सप्ताह में 700 ग्राम वजन पर चमच्च से दूध पीने लगी।
डा. सिंह ने बताया कि सर्वाधिक दुर्भर काम आंख के अंधेपन से बचना था। इसके लिए आक्सीजन की मात्रा कन्ट्रोल करना और माँ की दूध की उपलब्धता बनाये रखना है। इसके लिए उनके निर्देशन में हॉस्पिटल स्टाफ व  परिवार के सदस्यों ने भरपूर साथ दिया। अर्धविकसित और अत्यधिक कम वजन के बच्चों में अंधेपन की संभावना को देखते हुए नेत्र रोग विशेषज्ञ से आईसीयू में बच्चे की 3 बार और 2 बार वाराणसी भेजकर जांच करने के पश्चात आंख पूरी तरह स्वस्थ पायी गयी। उन्होंने बताया कि ऐसे बच्चों में कुछ महीनों तक खून नहीं बनता है। इसके लिए बच्चे को दो बार खून भी चढ़ाया गया। कुल 75 दिनों तक अस्पताल में रखने के बाद उसके स्वास्थ्य में पूरी तरह से सुधार तो हुआ। साथ ही उसका वजन भी 600 ग्राम से बढ़कर 14 सौ ग्राम हो गया। अंतिम 30-35 दिन मां को बच्ची को संभालने की सारी बारीकियां सिखायी गयीं। मां का दूध मिलने से बच्ची की आंख, मस्तिष्क, आंतों में कोई कमी नहीं आयी। अब वह मां का दूध पीने के साथ पूर्ण रूपेण ठीक है। शरीर के सारे अंग काम करते देख 20 जून को उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी।
इस बाबत पूछे जाने पर परिजन ने बताया कि अब बच्ची एकदम फिट है। सिर्फ रूटीन चेकअप के लिए अस्पताल लाया जाता है। परिजनों के अनुसार वह डा. जयेश के उपचार से संतुष्ट हैं। ढाई माह भर्ती होने के बावजूद बेहद कम खर्च में हमें उसकी दोबारा जिन्दगी मिल गयी जबकि कुछ डाक्टर उसे मुम्बई अथवा दिल्ली ले जाने की सलाह दे रहे थे।
वहीं बाल रोग विशेषज्ञ डा. सिंह ने बताया कि अगर इस तरह के बच्चे जन्म लेते हैं तो डिलवरी के समय डाक्टरों की टीम अस्पताल में मौजूद होनी चाहिए। बेहतर और होगा जब गर्भ के दौरान ही मां को टीका लगा दिया जाय। बच्चे के न्यूरो विकास के लिए कंगारू मेदर केयर की महती भूमिका होती है। इसके प्रयोग से ही बच्ची को ज्यादा लाभ मिला। उन्होंने सलाह दिया कि समय से पहले पैदा होने वाले बच्चे को अच्छे डाक्टर को दिखायें। घबराए नहीं। जरूर ठीक होगा। अन्त में उन्होंने कहा कि इस तरह के गम्भीर बीमारी से ग्रसित नवजात शिशुओं को लिये वाराणसी, लखनऊ, दिल्ली, मुम्बई जैसे बड़े महानगरों में जाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि बड़े अस्पतालों की सारी सुविधाएं अपने जिले में भी उपलब्ध हैं।

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