विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर श्री कृष्णा न्यूरो एवं मानसिक रोग चिकित्सालय में गोष्ठी आयोजित
जौनपुर। नगर के नईगंज स्थित श्री कृष्णा न्यूरो एवं मानसिक रोग चिकित्सालय में विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर गोष्ठी का आयोजन हुआ जहां न्यूरो एवं मानसिक रोग विशेषज्ञ डा. हरिनाथ यादव ने कहा कि विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस एक वैश्विक जागरूकता कार्यक्रम है जो पिछले दो दशकों से हर साल 10 सितम्बर को मनाया जाता है जिसका उद्देश्य आत्महत्या की रोकथाम के प्रति जागरूकता फैलाना और इसे समाप्त करने के लिए किए गए प्रयासों का जश्न मनाना है। इस दिन स्वास्थ्य सेवा प्राधिकारी/संगठन शासकीय निकायों, नीति निर्माताओं, स्थानीय समुदायों, परिवारों और व्यक्तिगत नागरिकों से जागरूकता पैदा करके, आत्मघाती कृत्यों के लिये वैकल्पिक उपायों को बढ़ावा देकर तथा आत्मघाती कृत्य के कारण अपने प्रियजनों को खोने वाले, आत्मघाती कृत्य के जोखिम में रहने वाले और जीवित बचे लोगों को सहायता प्रदान करने के लिए प्रकाश बनकर आशा उत्पन्न करने में योगदान देने का आग्रह करते हैं।
डा. यादव ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आत्महत्या एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चिन्ता है। वर्तमान में दुनिया भर में हर साल 10 लाख से ज़्यादा आत्महत्याएँ हो रही हैं और इसका असर बहुत ज़्यादा लोगों पर पड़ रहा है। इसके अलावा यह 15 और 29 वर्ष की आयु के लोगों की मृत्यु का चौथा सबसे बड़ा कारण है। आत्महत्या करने के पीछे कई कारण हो सकते हैं। जैसे बुढ़ापा, दीर्घकालिक बीमारियां, वित्तीय समस्याएं, आत्महत्या का पारिवारिक इतिहास, आय में कमी, वैवाहिक अलगाव, नकारात्मक जीवन के अनुभव, विकलांगता की ओर ले जाने वाली शारीरिक बीमारी आदि। इसके अलावा कई मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं आत्महत्या के बढ़ते जोखिम से जुड़ी हुई हैं। जैसे शराब की लत, अवसाद, अभिघात जन्य तनाव विकार, भावनात्मक तनाव आदि। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अनुमान लगाया कि अगले दो वर्षों में अवसाद वैश्विक स्तर पर विकलांगता का प्राथमिक कारण होगा, क्योंकि यह आत्महत्या के उच्च जोखिम से जुड़ी गंभीर चिकित्सा स्थितियों में से एक है।
डा. यादव ने बताया कि 2021 में एक वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार 77 प्रतिशत से अधिक आत्महत्या की घटनाएं निम्न और मध्यम आय वाले देशों में हुई। वहीं एनसीआरबी रिपोर्ट 2021 के अनुसार देश में करीब 170000 लोग प्रतिवर्ष आत्महत्या कर लेते हैं। नेशनल सुसाइड रेट 12 पर लाख है। भारत में 2014-2021 के दौरान किए गए एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार एवं एनसीआरबी रिपोर्ट के अनुसार 2014 की तुलना में, अध्ययन के अंत (2021) में आत्महत्या करने वाले अधिकांश लोग वृद्धावस्था के लोग (60 वर्ष से ऊपर पुरुष 54.7 प्रतिशत, महिला 33.6 प्रतिशत) और उभरती हुई वयस्कता (18-29 वर्ष के बीच पुरुष 38.8 प्रतिशत, महिला 6.1 प्रतिशत) थे जहां वैवाहिक स्थिति ने अपना प्रभाव दिखाया था क्योंकि अविवाहित लोगों (पुरुष 51.7 प्रतिशत, महिला 23.2 प्रतिशत) ने वर्तमान में विवाहित लोगों (पुरुष 35.7% प्रतिशत व महिला 6.0 प्रतिशत) की तुलना में आत्महत्या की अधिक प्रतिबद्धताएं दर्ज की थीं। 2014 और 2021 के बीच पुरुषों (दैनिक वेतन भोगियों) में आत्महत्या से होने वाली मौतों में 170.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई जिसके परिणामस्वरूप 2021 में पुरुषों के लिये आत्महत्या मृत्यु दर 34.6 और महिलाओं के लिए 13.1 रही।
डा. यादव ने बताया कि आज दुनिया भर के लोग पीले रिबन पहनकर अपना समर्थन दिखाते हैं और "आत्महत्या को रोका जा सकता है" के शोर के साथ जागरूकता को बढ़ावा देते हैं। 2021 के एक शोध अध्ययन में बताया गया कि राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम कार्यक्रम आत्महत्या की दरों को प्रभावी ढंग से कम करते हैं (25-44 और 45-64 वर्ष के बीच पुरुष आयु वर्ग में आत्महत्या की दर में गिरावट)। 2022 में एक अन्य शोध अध्ययन में बताया गया कि आत्महत्या रोकथाम कार्यक्रमों ने आत्महत्या की दर को प्रभावी ढंग से कम किया। इस वर्ष 2024 में विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस की थीम "आत्महत्या पर कथा बदलना" है जो "बातचीत शुरू करें" कार्रवाई के आह्वान के साथ एक त्रिवार्षिक थीम (2024-2026) की निरंतरता है। यह थीम आत्महत्या को रोकने के लिए कलंक को कम करने और खुली बातचीत को प्रोत्साहित करने के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने पर केंद्रित है।
न्यूरो एवं मानसिक रोग विशेषज्ञ ने बताया कि आत्महत्या पर कथा बदलने में इस जटिल मुद्दे को देखने के हमारे तरीके को बदलना और चुप्पी और कलंक की संस्कृति से खुलेपन, समझ और समर्थन की संस्कृति की ओर बढ़ना शामिल है। यह विषय नीति निर्माण में आत्महत्या की रोकथाम और मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की आवश्यकता पर भी जोर देता है तथा सरकार से कार्रवाई करने का आह्वान करता है। इस कथानक को बदलने के लिए मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने वाली नीतियों की वकालत करने, देखभाल तक पहुँच बढ़ाने और ज़रूरतमंदों की सहायता करने की आवश्यकता है। इस अवसर पर डा. सुशील यादव, लालजी, उज्ज्वल, शिव बहादुर सहित समस्त स्टाफ एवं मरीज उपस्थित रहे।
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