भारत-ईरान के इल्मी रिश्तों में नया इतिहास, हौज़ा इल्मिया क़ुम की सौवीं सालगिरह पर भारतीय उलेमा का ईरान में ऐतिहासिक स्वागत

भारत-ईरान के इल्मी रिश्तों में नया इतिहास, हौज़ा इल्मिया क़ुम की सौवीं सालगिरह पर भारतीय उलेमा का ईरान में ऐतिहासिक स्वागत

आज का दिन भारत और ईरान के दीनी व इल्मी रिश्तों के इतिहास में एक सुनहरा पन्ना बन गया। ईरान के मशहूर धार्मिक व तालीमी मरकज़ हौज़ा ए इल्मिया क़ुम की सौवीं सालगिरह के मौके पर भारत के चुनिंदा और सम्मानित उलमा-ए-किराम ने ईरान का दौरा किया और आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी साहब से मुलाक़ात कर नई इल्मी रवायतों की बुनियाद डाली।

यह सिर्फ एक मुलाक़ात नहीं थी — यह दो तहज़ीबों, दो रूहानियतों और दो क़ौमों की इज्ज़त और मुहब्बत का संगम था।

इस ऐतिहासिक सफर में शामिल थे:

मौलाना डॉ. कल्बे जवाद नकवी साहब – आफ़ताबे शरीअत, भारत की सुप्रीम रिलीजियस अथारिटी 

हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सैयद सफी हैदर जैदी साहब – तंजीमुल मकातिब के सेक्रेटरी और सोशल रिफार्मर 

मौलाना सैयद रज़ा हैदर जैदी साहब – हौज़ा गुफरान माब, लखनऊ के प्रिंसिपल और नायब इमामे जुमा

इनकी मौजूदगी से क़ुम और तेहरान के इल्मी व दीनदार तबक़ों में उत्साह की लहर दौड़ गई। ईरान के उलमा और आवाम ने भारतीय उलमा का तहे दिल से इस्तेकबाल किया।

आयतुल्लाह आराफी साहब ने कहा:

> "हौज़ा सिर्फ तालीम नहीं, बल्कि इस्लामी तहज़ीब और सोच की रूह है। हमें अब यूनिवर्सिटी और हौज़ा के ताल्लुक़ से मिलकर आज की चुनौतियों का हल निकालना होगा।"
उन्होंने ऐलान किया कि मई 2025 में हौज़ा की शताब्दी पर 50 से ज़्यादा रिसर्च वर्क और किताबों का लोकार्पण होगा।

इस अवसर पर भारत के उलेमा ने बताया कि –

> "भारत सिर्फ जमीनी तौर पर नहीं, बल्कि इल्मी, अदबी और मज़हबी सतह पर भी एक मजबूत मुल्क है, जिसकी आवाज़ पूरी दुनिया में सुनी जाती है।"

क्या हासिल होगा इस दौरे से?

भारत और ईरान के बीच दीनी रिश्ते और मजबूत हुए।
रूहानी एकता का पैग़ाम पूरी उम्मत को मिला।
तालीम और तहज़ीब का साझा भविष्य और मंसूबे सामने आए।
इस्लाम के नाम पर तफ़रक़ा नहीं, इत्तेहाद चाहिए – यही पैग़ाम है इस सफर का।

अगर आपको भी इस इत्तेहाद, इल्म और इज़्ज़त की यह कहानी पसंद आई हो – इसे शेयर कीजिए और बताइए कि भारत के उलमा आज भी दुनिया के इल्मी नक्शे पर चमक रहे हैं।

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