एक सितम्बर 2025 को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत देशभर के प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) अनिवार्य कर दी गई है। इस निर्णय से नाराज़ व चिंतित शिक्षकों की आवाज़ अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई है।
गुरुवार को अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ (एआईपीटीएफ) ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की। याचिका दायर करते समय उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ जौनपुर के जिलाध्यक्ष एवं प्रांतीय संयुक्त महामंत्री अमित सिंह सहित संगठन के कई पदाधिकारी मौजूद रहे।
उन्होंने बताया कि संघ के संरक्षक भाजपा एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय व प्रांतीय कार्यकारिणी ने इस मुद्दे पर कानूनी और विधायी दोनों स्तरों पर व्यापक तैयारी की है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश सरकार ने भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर पहले ही सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दी थी।
इस मौके पर एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा—
"शिक्षकों की इस कानूनी लड़ाई के साथ-साथ विधायी स्तर पर भी हम केंद्र और राज्य सरकार से मिलकर राहत दिलाने का हरसंभव प्रयास करेंगे। किसी भी कीमत पर शिक्षकों का अहित नहीं होने दिया जाएगा।"
वहीं राष्ट्रीय अध्यक्ष बासवराज गुरिकर ने बताया कि इस आदेश से देशभर के लाखों शिक्षक प्रभावित होंगे। अकेले उत्तर प्रदेश में ही लगभग 2 लाख से अधिक शिक्षक बिना टीईटी के कार्यरत हैं।
गुरुवार को दाखिल की गई याचिका में 2017 के संशोधन अधिनियम को चुनौती दी गई है। संगठन का कहना है कि कार्यरत शिक्षकों पर टीईटी की अनिवार्यता थोपना "पूर्णतया अव्यावहारिक, असंवेदनशील एवं शिक्षा का अधिकार कानून की मूल भावना के विपरीत" है।
इस दौरान राष्ट्रीय महासचिव कमलाकांत त्रिपाठी, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष उमाशंकर सिंह, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष संजय मिश्रा, राष्ट्रीय संगठन सचिव अर्जुन सिंह, प्रदेश अध्यक्ष विनय तिवारी, कार्यकारी राष्ट्रीय महासचिव विनोद ठाकरान, प्रदेश कोषाध्यक्ष/जिलाध्यक्ष सहारनपुर संदीप पवार, मांडलिक मंत्री मेरठ/जिलाध्यक्ष बुलंदशहर विनोद कुमार शर्मा, मंत्री शामली गुलाब सिंह, संयुक्त मंत्री गोंडा बलवंत सिंह, संयुक्त मंत्री जौनपुर शैलेंद्र सिंह, उपाध्यक्ष जौनपुर राजेश सिंह टोनी, संतोष सिंह बघेल और वीरेंद्र कुमार समेत कई राज्यों के प्रतिनिधि उपस्थित रहे।
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