शर्मनाक! शादी में “अपशगुन” न लगे, इसलिए बेटों ने ठुकराई माँ की लाश

शर्मनाक! शादी में “अपशगुन” न लगे, इसलिए बेटों ने ठुकराई माँ की लाश

आरिफ़ हुसैनी/मोहम्मद सोहराब

जौनपुर। इंसानियत को शर्मसार करने वाला मामला सामने आया है, जहाँ एक 65 वर्षीय माँ को मौत के बाद भी वह सम्मान नहीं मिल सका, जिसके लिए हर माँ हकदार होती है। गोरखपुर की शोभा देवी, जो अपने जीवन के अंतिम दिनों में जौनपुर के एक वृद्ध आश्रम में रह रही थीं, 19 नवंबर को बीमारी के चलते दुनिया से चली गईं। लेकिन उनके बेटों का अमानवीय व्यवहार सुनकर रूह काँप उठती है।

“शादी है… लाश मत भेजना, अपशगुन हो जाएगा” बड़े बेटे का जवाब

जब आश्रम प्रबंधक ने शोभा देवी के बड़े बेटे को माँ के निधन की सूचना दी, तो उसने जो कहा, उसने मानवता को शर्मिंदा कर दिया “घर में शादी है… अभी लाश भेजोगे तो अपशगुन हो जाएगा। चार दिन डीप फ्रीज़र में रख दो, बाद में ले जाऊँगा।”

एक बेटे का यह जवाब केवल एक माँ का नहीं, बल्कि पूरे समाज का हृदय छलनी कर देता है।

गोरखपुर पहुँचने पर अमानवीयता की पराकाष्ठा माँ का शव दफनाया!

आश्रम प्रबंधक रवि चौबे व रिश्तेदारों की कोशिशों से किसी तरह शव गोरखपुर पहुँचाया गया। उम्मीद थी कि बेटे अब अंतिम संस्कार करेंगे। लेकिन वहाँ भी निर्ममता की हद पार कर दी गई।

बड़े बेटे ने अंतिम संस्कार करने के बजाय शोभा देवी के शव को ज़मीन में दफना दिया, और कहा “चार दिन बाद मिट्टी से निकालकर अंतिम संस्कार करेंगे।”

सोचिए क्या कोई बेटा अपनी माँ की देह को इस तरह मिट्टी में दफनाते हुए यह कह सकता है कि बाद में निकालकर संस्कार करेगा? पति का दर्द—“चार दिन में कीड़े खा जाएंगे… फिर क्या संस्कार होगा?”

शोभा देवी के पति भुआल गुप्ता यह कहते हुए फफक पड़े “चार दिन में शव सड़ जाएगा, कीड़े खा जाएंगे… फिर कौन-सा संस्कार करेंगे? क्या इसी दिन के लिए बच्चों को पाला था?”

कभी किराना दुकान से परिवार पालने वाले भुआल घरेलू विवादों से टूट चुके थे। बड़े बेटे ने उन्हें घर से निकाल दिया था। बेघर होकर वह अयोध्या, मथुरा घूमते हुए अंत में जौनपुर के वृद्ध आश्रम पहुँचे, जहाँ शोभा देवी भी रहने लगीं।

किंतु बेटों की बेरुखी ऐसी थी कि न कभी हालचाल लेने आए, न इलाज करवाया और माँ की मौत पर भी उनके लिए शादी का “शुभ-अशुभ” ही सबसे बड़ा धर्म बन गया।

समाज के लिए आईना जब माँ ही अपशगुन लगे, तो समझिए संवेदनाएँ मर चुकी हैं

यह सिर्फ एक माँ की कहानी नहीं है, बल्कि हमारे समाज का कठोर सच है। वह माँ, जिसने जीवनभर अपने बच्चों को सँवारा, आज उन्हीं बच्चों के लिए बोझ और अपशगुन बन गई।

यह घटना एक बार फिर याद दिलाती है अगर जन्म देने वाली माँ ही अपशगुन लगने लगे, तो समझ लीजिए समाज की संवेदना कितनी खोखली हो चुकी है।

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