SIR में सपा गायब, मिशन 2027 पर बड़ा सवाल
आरिफ़ हुसैनी
जौनपुर । मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण SIR की प्रक्रिया ज़ोरों पर है, लेकिन समाजवादी पार्टी की मौजूदगी कहीं दिखाई ही नहीं दे रही। ज़िला प्रशासन, BLO, अन्य दलों की बूथ कमेटियाँ सभी अपना काम कर रहे हैं, पर जिस राजनीतिक दल को अपने वोट मज़बूत करने के लिए सबसे ज़्यादा सक्रिय होना चाहिए था, वह मानो चुनावी रडार से ही गायब है।
जमीनी कार्यकर्ताओं से लेकर संभावित उम्मीदवारों तक सपा का पूरा तंत्र “आउट ऑफ़ स्क्रीन” नज़र आ रहा है।
आम तौर पर SIR वह दौर होता है जब हर पार्टी बूथों को कसती है, नए वोटरों को जोड़ती है, पुराने हटाती है और हर गलती को पकड़कर सुधरवाती है।
लेकिन जौनपुर में स्थिति उलटी दिखाई दे रही है ।
सपा के कई कार्यकर्ता बूथ स्तर पर कहीं सक्रिय नहीं दिख रहे,टिकट के दावेदार भी क्षेत्र में SIR के काम से दूरी बनाए हैं और मौजूदा विधायक तक मतदाता सूची को लेकर उदासीन बताए जाते हैं। नतीजा जहाँ बाकी दल वोटर सूचियों की जाँच पर पूरा फोकस कर रहे हैं, वहीं सपा की मशीनरी मानो “स्टैंडबाय मोड” में डाल दी गई हो।
SIR में मौन, चुनाव के बाद EVM पर शोर?
राजनीतिक हलकों में मज़ाक चल पड़ा है कि
जहाँ मेहनत करनी चाहिए, वहाँ सपा दिखाई नहीं देती , और जहाँ शिकायत करनी हो, वहाँ सपा सबसे ज़्यादा दिखाई देती है । अगर SIR में पार्टी ग़ायब रहेगी, तो चुनाव के बाद परिणाम आने पर सबसे आसान बहाना क्या होगा, इसका अंदाज़ा सबको है EVM ।
मतदाता सूची में त्रुटियाँ दूर न करना, नए वोटरों को जोड़ने में लापरवाही और बूथ मजबूती की पूरी प्रक्रिया को हल्के में लेना यह सब वही शुरुआती ग़लतियाँ हैं जो बाद में चुनावी गणित बिगाड़ती हैं, और फिर परिणाम पर सवाल उठाने का चक्र शुरू होता है।
रणनीति या सुस्ती? जौनपुर इसका जवाब ढूँढ रहा है
कुछ लोग इसे “रणनीतिक चुप्पी” बताते हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर इसे सीधी संगठनात्मक सुस्ती माना जा रहा है।
अगर पार्टी का आधार ढाँचा ही SIR में सक्रिय नहीं होता, तो चुनाव के समय अचानक शक्ति कहाँ से आएगी?
जौनपुर की राजनीति के जानकार साफ़ कहते हैं
जितने नाम अभी जुड़ने चाहिए, उतने नहीं जुड़े तो आगे शिकायत का स्पेस ही नहीं बचेगा। खुद की गलती को EVM पर डालने से वोट वापस नहीं आते।
SIR वह चरण है जहाँ चुनावी जीत की नींव रखी जाती है। बाकी दल इस वक्त अपनी पूरी ताक़त मैदान में उतार रहे हैं। लेकिन समाजवादी पार्टी की चुप्पी और निष्क्रियता बताती है कि पार्टी अब भी चुनावी मोड में नहीं , जबकि चुनाव के संकेत हर ओर से तेज़ हो चुके हैं।

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